Wednesday 29 September, 2010

Pyaas

Pyaas

khadey us ped ke neeche,
kadam tapkey uchchlltey
kahin se aah kartey to
guzarish pe phisaltey
kahin sailab ki siski
kahin khwahish ki thirkan
kahi ulji hui us payaas
ke hothon pe roshan

Kahin tu aabru shab ki
kahin shohrat ki dulhan
Kahin to mujh me aa ke ruk
ke ho bezaar dhadkan
aisa kar aasma me mil
ke ban jayegi mehfil ...

Monday 12 April, 2010

no terminus

a billion noises
the black mount transpires
of birth and freedom and heaven and hell


that witch moaned in disgrace
of threads that covered her with bareness
the leash that whipped wild open
has the blues fixed in the place


i am more than the things
that merely overwhelm
and those firsts that turn you upside down
what joy could the youth share with the evolved
but age whips still ahoy
whips of bliss and misconceived highs.

i amt the witch because you knew not what to call
that uninvented, unprocured and unimagined joy.

Monday 15 March, 2010

ज़री

करती क्या
आज नीद नहीं आई
उलटी पलटी
करवट तय नहीं कर पाई
काली मांद से घिनोनी
एक उधार दवाई
दो- चार से क्या बनता
कुछ दर्ज़न मंगवाई
कुछ खुद गटकी ..
थोड़ी अधबुने सपनो को चटवाई

सोचा सो जाउंगी
दर्ज़न भर से
आज रात के लिए ढेर हो जाउंगी
हलक से उतरी तो कुछ चैन आया
सोचा देखा आज रात को बेवक़ूफ़ बनाया

पर रात नहीं वो सपना था
कम्बखत जिसपर कडवी दवाई बेअसर निकली
सपना था
जिसमे एक घर को खाली होता देखा
आज दोपहर जहाँ रंगीन पानी पर जा फिसली ..

आधा खुला दरवाज़ा जिसके सामने खुद को खड़ा पाया
कांप के मुड़ने लगी वापस
नीचे सीढ़ियों की तरफ
तो लगा पकड़ी गई किसी ने आवाज़ देकर बुलाया

आधा खुला था पूरा धकेल गई
जितने में मुडती
मेरी आदत
फिर लड़कपन में खेल गई

आवाज़ के अलावाएक ज़रीदार कमरा था
खाली
और एक संक्रा सा रास्ता
दुसरे खाली कमरे का
जिसका दरवाज़ा
कभी बंद नहीं होता था
काली बिल्ली के इंतज़ार में
बंद पड़ा था
एक अलमारी ..ताला लगी
ढूंढती रही
हाथ लगाया
तो राख हो गयी
एक फ्रिज पे रखी बोतल
छुआ तो छूने भर से
टूट कर खाख हो गई

अपने कमरे में
वो सारा सामान रखवाया
आज दोपहर
उस खाली घर में
टूटी बोतल के साथ
जब खुद को जागा पाया


करती क्या
आज नीद नहीं आई
उलटी पलटी
करवट तय नहीं कर पाई

Wednesday 3 March, 2010

एक संकरी सी गली में


दूर वहां
पोहोंच नहीं पाई आज भी जहाँ
वोही उस जगह
जहाँ जाना चाहती हूँ हर सहर
पिछले सवा महीने से
दबा आती हूँ रोज़
रोज़ सुबह
घर से निकलने से पहले
जाती हूँ
गहरा खोद कर
जहाँ पोहोंचना
सोच भी नहीं पाओगे
किसी से रास्ता पूछोगे
तो हमेशा की तरह धोखा खाओगे
खुद ढूंढोगे ?
मज़ाक समझ रखा है,
बचा खुचा
अपने नए घर का रास्ता भूल जाओगे

जाती हूँ रोज़
घर से निकलने से पहले
खोदती हूँ जब तक जहाँ का सिरा नहीं मिलता
सोचो तो .. रोज़

मिटटी में सनकर आती हूँ वापस
जवाब तो मैंने देने ही छोड़ दिए
कोई अब पूछता है तो
एक नया दुश्मन बनाती हूँ
हर रोज़

जिद्दी हूँ
हाँ जानती हूँ
पर हार जाती हूँ
शाम को
जब कमरा खोल कर
उसी एक
धुन को फिर दफ़नाने के लिए
सामने खड़ा पाती हूँ
हर रोज़

Tuesday 2 March, 2010

Where do i park ?

It aint
you heard me dint you ?
no it aint
there's no magic
no magician
no wizards
no fairies
no star is listening to me tonight
stars are deaf.
and dead
they are things.
What dolphins?
you heard me dint you?

There are no miracles
none.
only rusted mousetraps
in a huge round blind room
across that froggy alley
with bins
where you offered me mayonnaise,
yes,
that room
you took me to.

Friday 26 February, 2010

हुह .. अल्फाज़

कुछ कटा.
उसी फुदतकते हुए मेंडक की
फिसलती चमड़ी पर
वोही हरे मेंडक की सफ़ेद नर्म चमड़ी पे
कुछ चुभा.


नुकीला
ज़हर से भरा
काली जुबां की नामुरादी सा
कुछ गहरा था

बदतमीजी से भी गया गुज़रा
कुछ घिनोना सा
कुछ कट गया


खून बहा
तो बोले मैण्डक है
इसमें खून कहाँ !


दर्द में बेचारा
आह बोला
तो बोले
हुह .. अल्फाज़
मैण्डक कभी सच बोला था ?
जो आज बोलेगा ?


आंसू निकले कमबख्त
तो बोले
पानी में रहता है
साला नाटक करता होगा


रहा सहा पड़ा बेचारा कांप रहा था
पत्थर पे
तो लात मार कर
पत्थर से भी गिरा दिया

Friday 8 January, 2010

अब ?

अब ?

अब गिला क्या ... की अब तो दर्द दिया भी नहीं

कोई रंजिश , कोई गिला कोई शिकवा भी नहीं

अब सिकुड़ कर कोई शिकन पशेमान न हुइ

ना किसी बंद दरवाज़े पे दस्तक बन कर …

खुद को खोने के गम से मैं सरोबार हुई

अब ?


अब करें क्या ... की दर्द तो दिया ही नहीं

खुद को रोई भी नहीं ,खुदा को कोसा भी नहीं

अपने दामान की बदबू से परेशां न हुई

और ये अलफ़ाज़ , बैगैरत , टूट के चुभते भी नहीं

पतझड़ हें तो क्या ? दरक्त से पत्ते झडते ही नहीं

अब ?


अब तो नर्फ्रत रंजिश या शक की उम्मीद नहीं

अब तो बस पाक मोहोब्बत , बीता प्यार सही

ना ही माफी में दबी , गुनाहों की नुमाइश ही रही

अब हम हैं तो क्या ..? हम तो अब साथ नहीं …

अब ?...